बुधवार, 14 मार्च 2018

दुःख के स्वाङ्ग


बिहार की बहू नवेली
हरियाणा की बेटी अकेली
हिमांचल की वादियों में
बेटे की सलामती के लिए दिया जलाती बूढ़ी माँ
और झुर्रियों भरे चेहरे पर मुरझायी आँखों से 
प्रतीक्षा करते बूढ़े पिता... मुझे पता है
दुःख का यह पहाड़
एक संवेदनशून्य सूचना की तरह
आपके पास पहुँचने ही वाला है
कि बस्तर के जंगलों में
कुछ और जवानों के
चिथड़े-चिथड़े हो चुके शव
अपनी असामयिक
अंतिम यात्रा की प्रतीक्षा में हैं ।
सबको पता है
कि आपके आँगन में बस चुके अँधेरों को
मुआवज़े की रकम से तौल कर
एक रस्म अदा की जायेगी
सत्ताओं ने इन अँधेरों को
नाम दिया है – “बलिदान
देशभक्ति का
यह एक भावनात्मक मूल्य है
जो दिया जाता है
भावनाशून्य लोगों द्वारा
भोले-भाले लोगों को 
ताकि हुकूमत करते रह सकें
बूढ़े पिण्डारी
जवानों के रक्त के मूल्य पर ।

बस्तर की मैना
सत्ताओं का विरोध करती थी 
क्योंकि वह सदा से
युद्ध का विरोध करती थी ।
एक दिन मार दिया
मैना को भी,  
बस्तर में
अब नहीं पायी जाती
गीत गाने वाली पहाड़ी मैना ।  

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