रविवार, 19 अप्रैल 2015

हरिपथ की त्रासदी


हरिपथ पर चलते
हरिजन
हो जाते हैं दलित
भारत की धरती पर
होता है
अघटनीय घटित
लोग
मौन हैं
और सत्ता
स्वप्न में लीन ।


       “हरि” के बनाये पथ पर चलने वाले “जन” को समाज की कई शक्तियाँ की बाधाओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिये जाने की परम्परा भारत में सुदृढ़ होती जा रही है ।  भारत में नेताओं, उद्योगपतियों और ब्यूरोक्रेट्स को छोड़कर शेष अधिसंख्य “जन” स्वाभाविक “दलित” श्रेणी में आते हैं । अपने मौलिक अधिकारों के लिये हर वह संघर्षशील व्यक्ति “दलित” है जो असामाजिक शक्तियाँ के आगे अंततः अपनी लड़ाई हार जाता है । बस “दलित” और “अतिदलित” में अंतर इतना ही है कि दलित केवल हारता है किंतु अन्दर संघर्ष की एक चिंगारी बनी रहती है । जबकि “अतिदलित” हारने के साथ ही अन्दर बची एक मात्र चिंगारी से भी हाथ धो बैठता है ...उसे चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की स्थिति में लाकर छोड़ दिया जाता है । 

      भारत का हर वह कर्मठ और निष्ठावान व्यक्ति “अतिदलित” है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा या एक आम नागरिक होते हुये केवल “हरि के पथ” पर चलने के कारण आत्महत्या करने के लिये विवश हो जाता है । भारतीय लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी और विद्रूप विफलता है । 

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