बुधवार, 1 अप्रैल 2015

हक़ सपनों को जीने का

हक़ सपनों को जीने का

         अफ़गानिस्तान की ग़रीबी ने कुछ अफ़गानियों को ख़ूनी खेल का प्यादा बना दिया, वे अवैध नशे के कारोबार से जुड़ते गये, इस्लाम के नाम पर अपने ही भाइयों का ख़ून बहाते रहे ......और अपनी ही मासूम बच्चियों के ग़ुनहगार बनते गये .......ऐसे ग़ुनहगार जिसकी मिसाल भारतीय उपमहाद्वीप में इससे पहले कभी नहीं मिलती । 
         बच्चियों के यौनशोषण और उत्पीड़न के मामले में वे हैवानियत की सारी हदें पार करते चले गये । अपने से कई गुने उम्र के बुज़ुर्गों से शादी न करने की सज़ा उन्हें अपने नाक-कान गंवा कर देने के लिये मज़बूर होना पड़ता है । 
         इस्लाम के नाम पर आधी आबादी पर कहर टूटने की घटनायें कुछ  कम ज़रूर हुयी हैं किंतु पूरी तरह ख़त्म नहीं हुयीं । पड़ोस में कुछ लोग हैवानियत के शिकार होते रहें तो शेष दुनिया के लोगों को जगना ही होगा । 


काबुलीवाला तुम कहाँ हो ? 


रूस-पाकिस्तान और अमेरिका की तिकड़ी में फस गया काबुलीवाला अब कहीं नज़र नहीं आता, हो सकता है उसका भी घर किसी बम धमाके में धूल बनकर उड़ गया हो और अब उसका नाम-ओ-निशान भी न बचा हो । 


नीचे ओसामा ...ऊपर ख़ुदा ..........मगर मेरी कोई नहीं सुनता ......
कि मैं भी दुनिया की दीगर बच्चियों की तरह गुड़िया से खेलना चाहती हूँ ....


कोई बतायेगा .....मेरा ग़ुनाह ? क्यों अभिषप्त बना दिया है मुझे ? 
इस्लाम के नाम पर क्रूरता के कहर ढा कर किस ख़ुदा की इबादत करते हो तुम ? 


हक़ हमें भी है सपने देखने का .........
और उन्हें जीने का 



निकाह के नाम पर कामी बूढ़े की हबस की शिकार होने से ठीक पहले ......शून्य में खोयी दृष्टि ! मामा शकुनि का मुल्क कितना क्रूर हो गया है ..... 



क्रूर सैनिक कार्यवाही की दहशत अब नन्हें सपनों को ख़ौफ़ज़दा नहीं करती 




किसी देश की धरती पर विदेशी सैनिकों का होना अशुभ की घोषणा है । 


ज़ेहाद की कालिमा अगर हिफ़ाज़त में हो तो वहाँ कोई रोशनी कदम कैसे रख सकेगी !  


पढ़ायी के प्रति अफ़ग़ानी बच्चों का यह जज़्बा क़ाबिल-ए-तारीफ़ है,
हम उम्मीद की इस किरण को तहेदिल से सलाम करते हैं । 

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