शनिवार, 7 जून 2014

हिन्दुस्तान दा अक़्खिरी ढ़ाबा



       बस में बैठे-बैठे ही देखा, मार्ग के एक किनारे लिखा था – “हिन्दुस्तान दा अक़्खिरी ढ़ाबा”। स्पष्ट था कि बस अपने अंतिम गंतव्य पर पहुँच चुकी थी।
        जब हम हिमांचल प्रदेश के किन्नौर जिले के छितकुल ग्राम (कदाचित् शीतकुल का अपभ्रंश) में पहुँचे तो सूर्य देवता पश्चिमी देशों के सोये लोगों को जगाने के लिए जाने की तैयारी कर चुके थे । छितकुल में पहुँचते ही शीत ने अपनी उपेक्षा के लिए हमारी ऐसी-तैसी करनी शुरू कर दी। रकछम और सांगला में इतनी शीत नहीं थी। सांगला से छितकुल का रास्ता मात्र एक घण्टे का है, बस से उतरते ही हम बसपा नदी के किनारे बसे भारत के अंतिम गाँव के सौन्दर्य में खो चुके थे, जबकि शीत हमारे लिए बाधा बनकर खड़ी थी । फिर भी हमने साहस दिखाया और नदी के किनारे जहाँ तक जा सकते थे, ठिठुरते हुये पहुँच ही गये ।



यह है भारत के अंतिम गाँव में स्थित राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय, जिसके पास में ही है पर्यटन विभाग का विश्राम गृह । आज की रात हमें यहीं रुकना था । गाँव में 20-30 घर ही हमें दिखायी दिये, जिनमें से कुछ तो पर्यटक विश्राम गृह थे या फिर होटल ।  
 छितकुल में संध्या का दृष्य कुछ इस तरह था ...  

 और भोर का दृष्य कुछ इस तरह ... 


हिम का एक बादल अलसाया सा उतरा और शिवालिक पर्वत के सीने में मुँह छिपाकर सो गया । 



सुबह जब सोकर उठा तो सूरज की किरणों ने विश्राम गृह के गवाक्ष से भीतर कूदकर मंद स्मित से मेरे गालों पर थपकी दी । मैं उठा तो किरणों ने बिना कुछ बोले ही बाहर की ओर संकेत किया । बाहर का दृष्य देखकर मैं रोमांचित हो उठा ।  मेरे सामने स्वर्ण किरीट धारण किये कैलाश पर्वत मुस्करा रहा था । 
       



कदाचित, आज मैं अपने जीवन का अनुपम और सर्वश्रेष्ठ दृष्य अपने कैमरे में उतार रहा था ।  


सूर्य देवता ने कुछ और कृपा की तो कैलाश पर्वत की चोटियों पर स्वर्ण किरणों से बुना दुकूल फैलता चला गया । 
नीचे आप देख रहे हैं राजकीय आयुर्वेद औषधालय का भवन, जो कल शाम को मात्र एक छायावत् दिख रहा था ।  


सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की साक्षात अनुभूति ....अवर्णनीय । शब्दों में भला कौन व्यक्त कर सकता है इसे ! 




शिव जी का निवास है कैलाश पर्वत ! आप कैलाश जायें और शिव जी के दर्शन न हों .......यह सम्भव है भला ! नेत्र उन्मीलित कीजिये ...शिव आपके सम्मुख हैं .... 


छितकुल से नीचे उतरते समय सेव का एक बागीचा । श्वेत पुष्प देख रहे हैं न आप ! ये फूल सेव के हैं । जब आप सर्दियों में यहाँ आयेंगे तब तक इनमें फल लग चुके होंगे । 

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.