सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

बाँध सको तो ....


मुझे पता है 
तुम्हारी आँखों में तैरता नशा 
वसंत की
मादक हवा का नहीं 
बल्कि 
उस सन्देश का है
ज़ो 
किसी बाग़ में झूमते 
आम के बौर ने भेजा है .
आम तो बावरा है 
और ........
हवा का भी क्या भरोसा 
कब गर्म हो जाय ,
और कब ठंडी,
कब सामने से चले
और कब पीछे से,
रुक जाए 
कब चलते-चलते
और 
कब झकझोर कर रख दे .........
................पूरे बगीचे को.
धरती पर ..........
न जाने कब लग जाएँ 
टूटे बौर .........
या, कच्ची अमियों के ढेर .
हवा का क्या ठिकाना ?
प्रिय सखी !
तुम तो केवल ........
उठा सको 
तो उठा लेना
हवा के पंखों पर बैठी सुरभि को 
और .......
बाँध सको 
तो बाँध लेना 
अपनी स्मृति के आँचल में 
आम का बौरायापन ...........
आम का बौरायापन .



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