बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

बिना शीर्षक...




रेक्टम और एनस ने बगावत कर दी –
मुँह ने सदियों से पक्षपात किया है
खीर-पूड़ी खुद खाता है
और हमें देता है फीकल मैटर ।
खुद रहता है ऊपरी माले में
क्रीम-पावडर-लिपिस्टिक लगाकर,
हमें कैद करके रखा है दो टाँगों के बीच,  
बटक के दो विशाल हाव्स
अड़ा दिए हैं दरवाजे पर, दम घुटता है हमारा ।
खुद ‘किस’ करता है ख़ूबसूरत चेहरे
खिलखिलाता है हमें जलाने के लिए
चमकता है टीवी पर
हमारी तो जैसे कोई औक़ात ही नहीं
किसी ने पूछा है आज तक हमें ?
अब हम यह अत्याचार नहीं सहेंगे
टीवी पर चमकेंगे, ख़ूबसूरत चेहरों को ‘किस’ करेंगे ।
हम अंगाधिकार आयोग बनायेंगे
मनुवादी अत्याचार से मुक्ति पायेंगे ।
मौका देखकर
किडनी के नेफ़्रॉन्स भी चिल्लाये –  
स्कल के फ़ोर्ट में आराम से रहता है दिमाग
स्साला ! मनुवादी कहीं का !
न काम न धाम
जब देखो तब केवल हुक़्म चलाता रहता है  
हमें देखो,
रात दिन लगे रहते हैं
कूड़ा-कचरा साफ करने में
बहाते हैं अपना ख़ून-पसीना
ऊपर से पक्षपात ये
कि अपनी सुरक्षा के लिए 
लगा रखा है इसने ब्लड-ब्रेन बैरियर
सब कुछ शुद्ध चाहिये इसे एकदम प्योर
और बाकी लोगों से ज़्यादा भी ।
मनुवादी ब्रेन की अब और नहीं चलेगी गुण्डागर्दी
समाप्त करके रहेंगे इसकी तानाशाही ।
स्टमक भी चिल्लाया
यहाँ दिन-रात एच.सी.एल. से जूझते हैं
अल्लम-गल्लम भोजन को पचाते हैं
और जब तैयार होता है एण्ड-प्रोडक्ट
तो लिवर हथिया लेता है सारी फसल ।
रेक्टम, किडनी, स्टमक तीनों ने सुर मिलाया
हम दलित हैं, मज़दूर हैं, दबे-कुचले हैं
हमें भी फ़ोर्ट और ऊपरी माले में रहने का सुख चाहिये
ब्रेन और मुँह के डिपार्टमेण्ट में काम चाहिये ।
विसरल भाईचारे और समरसता के लिए
उन्हें भी हमारे हिस्से का काम करना होगा
शरीर के विकास के लिए साम्यवाद लाना होगा ।  
लाल सलाम ज़िन्दाबाद !
विसरल भाईचारा ज़िन्दाबाद !
मनुवादी ब्रेन मुर्दाबाद !
तानाशाह मुँह मुर्दाबाद !
तिलक-तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार !

ज़िस्म के भीतर एक क्रांति की शुरुआत हुयी
अंगाधिकार आयोग का गठन हुआ
आयोग ने गम्भीरता की चादर ओढ़ी
नये संविधान की सिफ़ारिश की
रेक्टम, नेफ़्रॉन्स और स्टमक को न्याय मिला
अब उन्हें मुँह, ब्रेन और लिवर सेक्टर में
पचास प्रतिशत आरक्षण मिल गया है । 
मुँह, ब्रेन और लिवर की पचास प्रतिशत सेल्स
बेरोज़गार हो गयी हैं
लाखों साल से चला आ रहा अत्याचार ख़त्म हो गया है ।

अब
मेकॉज में
बाल्टी नल के नीचे नहीं
टपकती छत के नीचे रखने से भरती है ।
पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में
चीख-चीख कर पढ़ा गया मंत्र
”तिलक-तराजू और तलवार
इनको मारो जूते चार”
कितना प्रभावी मंत्र है  
इस मंत्र की शक्ति से
इंसानी ज़िस्म में साम्यवाद आ गया है
वह बात और है
कि जंगल के जानवर
इंसानों को देखते ही  
व्यंग्य से हँसने लगे हैं ।

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