सोमवार, 28 मार्च 2016

लगी हुयी है आग

युद्ध

महाभारत का युद्ध
अभी समाप्त नहीं हुआ है ।
अभिमन्यु आज भी चक्रव्यूह में घिरा है
और भीष्म महामण्डलेश्वर हो गया है ।
पाण्डव कहीं अज्ञातवास पर हैं, 
कृष्ण ने अपनी भूमिका बदल दी है
और जनता चौपाई गा रही है –
कोउ नृप होहि हमैं का हानी .. 
  
ग़रीब साम्यवाद की अमीर ख्ख़्वाहिशें

कन्हैया ग़रीब है
बेहद ग़रीब है
वह ग़रीबी को भगाना चाहता है
ग़रीबों के लिये लड़ना चाहता है
लड़ाई के लिये देश-विदेश जाना चाहता है
आँगनबाड़ी में काम करने वाली उसकी माँ
एक-एक पाई जोड़कर
हवाई जहाज की टिकट की व्यवस्था करती है ।
कन्हैया
अब आसमान में उड़ता है
अपने नारों में लाल रंग भरता है ।
दोस्तो !
साम्यवाद की शुरुआत
कुछ इसी तरह होती है
जो कुछ समय बाद
थ्येन-ऑन-मन चौक पर
लाल रंग में ख़त्म हो जाती है ।   

एक हिंदू की मौत

भारत की राजधानी में
एक डॉक्टर की हत्या होती रही
और पड़ोसी सहिष्णु बन गये ...
क्रूर हिंसक तमाशे पर
समाज की निर्विकारिता
और अ-प्रतिक्रिया ने
शिक्षा को उसकी औकात बता दी ।
संस्कृति
कटघरे में खड़ी हो गयी
और लोग होली मनाने
घरों में दुबक गये ।
मामला एक डॉक्टर का था
जो न तो दलित था और न मुस्लिम
इसलिये
चिंता की कोई बात नहीं
जाइये .....
आप भी सो जाइये
रात बहुत गहरी हो चली है ।          

हैरानी

केसरिया इनका, लाल उनका,  हरा हमारा ....
ऊपरवाला हैरान है
रंग बनाते समय
यह तो कभी सोचा ही नहीं !

ग़नीमत है
कि झगड़े रंगों में नहीं
रंगे हुये लोगों में हैं ।

बटवारा

पहचान बट गयी
धर्म बट गये
महापुरुष बट गये
रंग बट गये
वेश बट गये
देश बटना शेष है एक बार फिर ।
असुर शक्तिशाली हैं
और बेचारी प्रजा को भरोसा है
कि होने ही वाला है कोई अवतार
शेष लोग प्रतीक्षारत् हैं
देखने के लिये
देश को बटता हुआ
एक बार फिर ।
क्या भारत

सचमुच एक चेतनाशून्य देश हो गया है !   

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.