सोमवार, 14 सितंबर 2015

एक सच्चा तीर्थस्थल जहाँ जाने की फ़ुरसत किसी को नहीं है

सेवाग्राम, 10 सितम्बर 2015

अवसर था भारत के प्रथम ग्रामीण चिकित्सा शिक्षा संस्थान यानी “महात्मा गांधी चिकित्सा संस्थान” में “Healthy Yoga Life Style For Prevention Of Life Style generated Diseases” विषय पर दो दिवसीय सिम्पोज़िम के आयोजन का । मैं तनिक रोमांचित हुआ था जब डॉ. बी.सी. हरिनाथ ने ईमेल से सूचित किया कि मेरे रात्रि विश्राम की व्यवस्था रुस्तम भवन में की गयी है । 1836 में जब गांधी जी साबरमती आश्रम छोड़कर सेवाग्राम में कुटी बनाकर रहने लगे तो अतिथियों के रहने के लिये वहाँ कोई व्यवस्था नहीं थी । अतिथि वहाँ न आयें, यह भी सम्भव नहीं था । ब्रिटिशभारत में सत्याग्रह आंदोलन के संघर्षशील अग्रणी नेता भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपने अनोखे आंदोलन के लिये चर्चित हो चुके थे । गांधी जी के सेवाग्राम आने के साथ ही वर्धा का यह एक छोटा सा ग्राम भारत की राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था । स्वतंत्रता संग्राम के बड़े-बड़े पुरोधाओं के लिये सेवाग्राम का यह आश्रम एक राजनीतिक तीर्थ स्थान से कम नहीं था ।
गांधी जी के मित्र रुस्तम ने अतिथियों की आवश्यकता को देखते हुये गांधी जी की अनुमति से सेवाग्राम में उनकी कुटी के समीप ही एक अतिथि भवन बनवाया था जिसे रुस्तम भवन के नाम से जाना गया । इसी रुस्तम भवन के कक्ष क्रमांक 4 में मेरे रुकने की व्यवस्था की गयी थी ।
मैं कभी गांधी का अंधभक्त नहीं रहा किंतु सेवाग्राम आने के बाद एक लौकिक व्यक्ति की कार्यस्थली को देखकर अंदर से एक ही आवाज़ आती रही कि इस वक़्त मैं एक सच्चे तीर्थस्थल में हूँ । जब कोई स्थान स्वप्न में भी अपनी विशेषताओं के साथ आपके मन-मस्तिष्क में छाया रहे तो समझ लीजिये कि आप एक जीवंत तीर्थस्थल में हैं ।  
गांधी इस मायने में विशिष्ट हैं कि उनकी कथनी और करनी में पूरे विश्व ने एकरूपता के दर्शन किये । स्वतंत्र भारत के नेता जिस तरह जनता के धन का दुरुपयोग करने के अभ्यस्त हो गये हैं वह एक गम्भीर चिंता का विषय है । जीवन जीने और राजनीति के माध्यम से देशसेवा के लिये भौतिक संसाधनों की कितनी अधिकतम आवश्यकता हो सकती है यह सीखने के लिये भारत के हर राजनीतिक व्यक्ति को सेवाग्राम आकर कुछ दिन गांधी की शैली में जीवन व्यतीत करना ही चाहिये । मुझे आश्चर्य है कि भारत सरकार ने अभी तक ऐसा कोई कार्यक्रम क्यों नहीं बनाया



मिट्टी का घर, रुस्तमभवन अतिथिशाला


अतिथिशाला का मिट्टी से बना वह कक्ष जिसमें दो दिन रहकर गांधीजीवन पर चिंतन का सुअवसर मिला 


गांधी आज नहीं हैं किंतु उनकी स्मृतियों को जीवित रखने के उपक्रम में सेवाग्राम स्थित गांधी की कुटिया में नित्य की तरह सफाई करतीं एक बुज़ुर्ग माँ ! 


कच्ची कुटिया के एक छोटे से कमरे में ज़मीं पर बैठकर भी की जा सकती है देशसेवा । गांधी की कुटिया का वह कक्ष जहाँ कभी तत्कालीन राजनीतिज्ञ चटाई पर बैठकर करते थे मंत्रणा । क्या स्वाधीनभारत के मंत्री ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत करने का नैतिक साहस कर सकेंगे ?


गांधी जी का वह अध्ययनकक्ष जहाँ वे कुछ ख़ास लोगों से मंत्रणा भी करते थे । पास में एक ओर रखी है लालटेन और दूसरी ओर है पुस्तकें रखने एक लिये छोटी सी अल्मीरा ।


यह है आदिनिवास यानी साबरमती से सेवाग्राम आने के बाद प्रारम्भ में कुछ दिनों के लिये गांधी जी का निवास स्थान जहाँ कुछ समय तक उनके साथ संत तुकोडजी और बलूचिस्तान के ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खाँ ने भी निवास किया । ख़ान को सीमांत गांधी के नाम से भी जाना जाता रहा है ।


राजकुमारी अमृत कौर का वह कक्ष जहाँ वे गांधी जी के कार्यालयीन कार्यों को देखती थीं 


प्रकाश बाहर है और अंधकार हमारे भीतर । भारतीय राजनीति इस अंधकार से छटपटा रही है ... और हैरान हो रही कि अब कोई गांधी जन्म क्यों नहीं लेता ?  

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