मंगलवार, 4 अगस्त 2015

पोर्न के समर्थन में हैं देश के बुद्धिजीवी


प्रसिद्ध लेखक चेतनभगत और फ़िल्मनिर्देशक रामगोपाल वर्मा के साथ-साथ एक न्यायाधीश भी पोर्न के समर्थन में कूद पड़े हैं । पोर्न के समर्थन का सीधा सा अर्थ समाज के लिये उसकी आवश्यकता को रेखांकित करता है । बुद्धिजीवियों द्वारा पोर्न का समर्थन किये जाने से अब यह एक बड़ी बहस का विषय हो गया है । इस बहस में एक ओर हैं देश के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी और दूसरी ओर हैं हमारे जैसे सामान्य नागरिक । ये वो बुद्धिजीवी हैं जो आधुनिक चिंतन के फ़ैशन को अपनाकर विकास की नयी-नयी परिभाषायें गढ़ने में कुशल हैं । भारतीय जीवनमूल्य, सनातनधर्म, वैदिक सभ्यता, भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति, भारतीय लेखन, भारतीय चिंतन ..... और वह सब कुछ जो भारत की विशिष्ट पहचान का प्रतीक है, इन बुद्धिजीवियों के भेदकलक्ष्य हैं    

         हम पोर्न का समर्थन नहीं करते, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर भी नहीं । यह एक कुतर्क है कि सामाजिक क्षति पहुँचाये बिना बन्द कमरे में पोर्न के आनन्द से किसी को वंचित करना किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपहरण करना है । हम यह नहीं मानते कि बन्द कमरे में पोर्न का उपयोग समाज को क्षति नहीं पहुँचाता । अनैतिक यौन सम्बन्धों और यौनापराधों के लिये कारणभूत तत्वों में पोर्न आचरण भी उत्तरदायी है । पोर्न आचरण केवल बन्द कमरे में देखने तक ही सीमित नहीं रह सकता उसके पश्चातवर्ती प्रभावों की एक लम्बी श्रृंखला मनोवैकारिक और मनोदैहिक विकृतियों को जन्म दे सकती है । चेतन भगत का सुझाव है कि स्त्रियों को स्पर्श करना और घूरना प्रतिबन्धित होना चाहिये, पोर्न देखना नहीं । तथाकथित नयी चेतना के आदर्श चेतनभगत का सुझाव और चिंतन मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के विरुद्ध है । जो पोर्न देखकर कमरे से बाहर निकलेगा वह सामने पड़ने वाली हर स्त्री के सामने यौनचिंतनमुक्त नहीं हो सकता, ऐसे व्यक्ति के लिये स्त्री को घूरना और स्पर्श करना ही नहीं बल्कि यौनव्यवहार की किसी भी सीमा का उल्लंघन करना पोर्नदर्शन के पश्चातवर्ती प्रभाव का ही परिणाम होगा । ऐसे व्यक्ति पोर्नप्रेरित अपनी यौनकल्पना को व्यावहारिक प्रत्यक्ष में परिवर्तित करने का कोई अवसर हाथ से जाने देंगे, ऐसा सोचना जड़ता का परिचायक है ।
        विकृतसमाज की सोच वैश्यावृत्ति को भी समाज की आवश्यकता मानकर उसका समर्थन करती है । हम इसे भी स्त्री-पुरुष यौनसम्बन्धों का सर्वाधिक घृणित और वीभत्स रूप मानते हैं किंतु वैश्यावृत्ति की अपेक्षा पोर्नआचरण कहीं अधिक विकृत और गम्भीर दुष्परिणाम देने वाला है ।

पोर्न एक विकृत उद्योग की तरह स्थापित हो चुका है । इस उद्योग में कच्चेमाल की तरह प्रयुक्त लड़कियों और स्त्रियों की मनोदैहिक, व्यक्तिगत-सामाजिक पीड़ाओं और अमानवीय शोषण की स्थितियों के प्रति रामगोपाल वर्मा, न्यायाधीश जी और चेतनभगत की चेतना शून्य है ।
जे.एन.यू. में व्याप्त अपसंस्कृति के संवाहक इन बुद्धिजीवियों ने भारतीय जीवनमूल्यों के विरुद्ध अपसंस्कृति का बिगुल फूंकने की सारी नैतिक और सामाजिक सीमाओं की धज्जियाँ उड़ाने को ही अपने विकासशील होने का मानदण्ड बना लिया है । चेतनभगत जैसे बुद्धिजीवियों से देश के युवावर्ग को सावधान रहने की आवश्यकता है ।    

.....चलते-चलते ..... एक समाचार यह भी मिला है कि राजस्थान की पाठ्यपुस्तकों में अब “महान संत आसाराम” को भी स्थान दिया गया है । पाठ के लेखक, पाठ्यपुस्तक में पाठ को सम्मिलित करने वाले अधिकारी और वह पूरी श्रृंखला जो इस कार्य में संलिप्त है, धर्मोपदेश के बहाने अनैतिक यौनव्यापार और स्त्री उपभोग के समर्थक और पोषक हैं ।  
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सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है वयस्कों को पोर्नआचरण का अधिकार – सेवा निवृत्त न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ।

सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम- 2008 के सेक्शन 79(3) (बी) तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद19(2) के अंतर्गत तत्काल चुनिन्दा 857 वेबसाइट्स को प्रतिबन्धित करने के लिये इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को निर्देश ज्ञापित किये हैं । सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ने सरकार द्वारा पोर्न की 857 वेबसाइट्स को प्रतिबन्धित किये जाने के विषय पर सरकार को उपदेश देते हुये कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने वयस्क व्यक्ति को पोर्न आचरण का अधिकार प्रदान किया है । सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के वर्डिक्ट को ठीक से समझे बिना ही प्रतिबन्धात्मक आदेश ज्ञापित कर दिये हैं जो कि न्यायालय के वर्डिक्ट की अक्षरशः अनुपालना नहीं है । साइबर प्रकरणों के अधिवक्ता पवन दुग्गल के अनुसार सरकार ने सीधे-सीधे सर्विस प्रोवाइडर्स को सेक्शन 79 के आधार पर आदेश ज्ञापित कर दिये हैं जबकि ऐसे आदेश सार्वजनिक करते हुये टेलीकम्युनिकेशन विभाग द्वारा ज्ञापित किये जाने चाहिये थे । दुग्गल के अनुसार ऐसे आदेश आई.टी.एक्ट के सेक्शन 69 के आधार पर ज्ञापित न करके सेक्शन 79 आधार पर ज्ञापित किये गये हैं जो एक रहस्य है ।
भारत के तथाकथित सभ्यबुद्धिजीवी पोर्नआचरण बच्चों के लिये वर्ज़्य मानते हैं, वयस्कों के लिये नहीं । बहरहाल, “पोर्न हाँ” “पोर्न ना” युद्ध ज़ारी है ।  

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