सोमवार, 6 जुलाई 2015

योजनाबद्ध बलात्संग -एक श्रृंखला ....... !



-      7 जुलाई 2015 की सन्ध्या छह बजे तक शिक्षा के एक घोटाले की जाँच से जुड़े 40 लोगों की एक-एक कर मृत्यु ! न्यायिक प्रक्रिया !  लोकतांत्रिक व्यवस्था !  ज़ीरो टॉलरेंस की उद्घोषणा !  बुरे दिनों के बीत जाने का आश्वासन !  और प्रतीक्षारत आम आदमी ! .....आज के चिंतन ये कुछ विषय हैं जिन्होंने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है ।
-      व्यावसायिक परीक्षामंडल द्वारा एम.बी.बी.एस. में प्रवेश के लिये पात्रता परीक्षा में अपात्र आवेदकों को सुपात्र प्रमाणित करने का वर्षों तक निरंकुश हो कर चलता रहा एक सुनियोजित षडयंत्र हमारी व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है ।
-      विद्या की देवी सरस्वती को पूजने वाले देश में शैक्षणिकअपराध को क्या उपयुक्त संज्ञा दी जा सकती है ?
-      मैं इस अपराध को माँ सरस्वती के प्रति गुण्डई नहीं बल्कि बलात्संग कहना चाहूँगा । आदर्शों और भारतीय मूल्यों की रक्षा करने के लिये स्वघोषित दृढ़संकल्पितवर्ग अपने संकल्प की रक्षा करने के लिये “संकल्पित”  जैसा प्रतीत नहीं होता । प्रतिबद्धता की दिशा प्रतिलोम हो गयी है, पाखण्ड की चादर स्याह से स्याह होती जा रही है और उत्तरदायित्व लेने के लिये कोई सामने आने को तैयार नहीं है ।
-      उनकी हत्या हो रही है जो सरस्वती के बलात्संगियों को प्रमाणित कर सकते हैं, यानी बलात्संगी शक्तिशाली हैं .....और राजा मूकदर्शक है ।
-      यहाँ दो बातें करने का मन है मेरा । एक तो यह कि इस तरह अपात्र लोगों को चिकित्सा शिक्षा में प्रवेश देकर पात्रता परीक्षा के औचित्य पर एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है । मैं एक ऐसे ही अपात्र छात्र के साथ पहले ही दिन से यात्रा करना चाहता हूँ .......
-      तो हमारी यात्रा प्रारम्भ होती है ऐसे ही एक अपात्र छात्र के साथ जो सरस्वती के बलात्संगियों के दलालों की कृपा से मेडिकल कॉलेज में दाख़िला लेने में सफल हो जाता है और बलात्संग का मुख्य अपराधी बन जाता है । यह अपात्र व्यक्ति मेडिकल की तीनों प्रॉफ़. परीक्षायें क्रमशः उत्तीर्ण करता रहता है यानी प्रवेश परीक्षा में योग्यता न रखने वाला एक मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस. की तीनों परीक्षायें उत्तीर्ण कर लेने और सफलतापूर्वक इण्टर्नशिप पूर्ण करने की योग्यता रखता है । अब प्रश्न यह है कि यदि कई मुन्नाभाई डॉक्टर बनने की योग्यता रखते हैं तो क्या हर वह छात्र जिसने बारहवीं परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है एम.बी.बी.एस. की पढ़ायी कर सकने की योग्यता नहीं रखता ? यदि रखता है तो फिर प्रवेश परीक्षा का यह पाखण्ड क्यों ? मुझे लगता है कि हमें प्रवेशपरीक्षाओं के औचित्य और उनकी प्रामाणिकता पर नीतिगत् निर्णय लेने चाहिये ।
-      दूसरी बात जो मैं करना चाहता हूँ वह यह है कि भारत की विशिष्ट संस्कृति, उत्कृष्ट सभ्यता और अनुकरणीय जीवनमूल्यों के साथ हो रहे नित नवीन बलात्कारों की निरंकुश श्रंखला भी हमारी चेतना को आन्दोलित कर पाने में सफल क्यों नहीं हो पा रही है ? क्या हम किसी अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं ?
-      विद्या को देवी स्वीकारने की संस्कृति वाले देश में विद्या के साथ सुनियोजित पाखण्ड होते रहते हैं .... सरस्वती के साथ बलात्संग होता रहता है किंतु हम फिर भी बेहया और संवेदनहीन बने रहते हैं .... यह किस संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है ?

हमारे देश में एक राजनैतिक बेहयापन यह भी है कि जब कोई सत्ता से बेदख़ल हो जाता है तो वह पूरी ग़ुस्ताख़ी और बड़ी मासूमियत के मिश्रण वाली धूर्तता के साथ सारा ठीकरा “एण्टी इंकम्बेंसी फ़ैक्टर” नामक एक अदृष्य व्यक्ति पर फोड़ देता है । किंतु दुर्भाग्य ! प्रजा को पता है कि राजा बनने की पंक्ति में खड़े लोगों का नाम कंस है और प्रजा के पास उन्हीं में से किसी एक कंस को चुन लेने के विकल्प के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है क्योंकि चेतनाहीन प्रजा को प्रतीक्षा है एक और अवतार की ।   

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