मंगलवार, 5 मई 2015

औरत होने की कीमत

आज फिर
एक छटपटाती चिड़िया उड़ रही है
कभी इस डाल
कभी उस डाल
उसके दिल में
एक हूक है
डबडबायी आँखों में
एक निराश होती फ़रियाद है
मन में
पश्चाताप है । 
आज फिर
एक युवती का भविष्य
निर्मम राजनीति की भेंट चढ़ गया है । 

अभी-अभी पता चला है
कि जो कसम खाते हैं
आम होने की
दर-असल वे कितने खास होते हैं ।
वह
जो अब
खा रही है
दर-दर की ठोकरें
उसने
अपना सब कुछ दे दिया
उन्हें
जो अवसरवादी थे ।
परिवर्तन की उम्मीद के पर लगाकर
उसने उड़ना चाहा था
किंतु उसे क्या पता
कि उसे चुकानी पड़ेगी
एक औरत होने की कीमत
कुछ मूल्यहीन निष्ठुरों की दुकान पर ।

मुल्क में
सियासत हो रही है 
कि एक आम ने  आम को  छला
या आम के चोले में एक खास ने
आम को छला ।
मेरी तो पीड़ा यह है
कि एक मातृशक्ति को
कुछ दरिन्दों ने
सरे आम बना लिया है
अपनी नसेनी का
एक अदना सा
किंतु महत्वपूर्ण डण्डा
जिस पर रखकर पैर
वे चढ़ते जायेंगे
चढ़ते जायेंगे
और पा लेंगे राजसिंहासन
एक दिन
एक नकाबपोश युवती के
दर्द की कीमत पर ।
माननीय आम जी !
आप तो आनन्द लीजिये
उस फ़ड़फड़ाती चिड़िया का 
जिसके दर्द का 
बना दिया गया है
एक चटखारेदार तमाशा ।   

2 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक चित्रण। आम के ख़ास होने का पूरा यात्रा-संस्मरण पढ़ 'आम' के प्रति खिन्नता क्रोध में बदल चुकी है। धूर्तता का पर्याय बनते जा रहे हैं उस पंगत के लोग।

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    1. बहुत निराशा हुयी है ....कुछ इस तरह कि ....जिधर भी दौड़ते रहे .....समझ के दरिया ......उधर ही तपती रेत मिलती रही ।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.