बुधवार, 22 अप्रैल 2015

मूल्यों का अवमूल्यन और आत्ममंथन



     गंगाराम मुक्त हो गया है ...गंगा के प्रति आस्था के दिव्य भाव से भी और राम की मर्यादाओं के आदर्श से भी ।

     गंगा और राम भारतीय मूल्यों के प्रतीक माने जाते रहे हैं .....गंगाराम को अब इन प्रतीकों की आवश्यकता नहीं रही । उसे कुछ विदेशी मूल्यों के प्रतीक प्राप्त हो गये हैं......विदेशी आस्था के विषय उपलब्ध हो गये हैं । गंगाराम को अब अपने पूर्वजों के आशीर्वाद की आवश्यकता नहीं रही ...यहाँ तक कि उसने उनसे अपने होने के सूत्र को भी अस्वीकार कर दिया है और अपनी जीवनशैली को ऐसा बना लिया है जिससे उसकी आस्था अरबी मूल्यों का प्रतीक बन जाय ।  

     भारतीयता के भाव से मुक्त होने के लिये वह सर्फ़ुद्दीन बना है या सर्फ़ुद्दीन बनने के लिये वह इन भावों से मुक्त हुआ है ....सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से यह विचारणीय है । क्या यह विद्रोह है ? क्या यह भारतीय मूल्यों के प्रति नकारात्मक भाव है ? क्या यह भारत के सामाजिक, राजनीतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक आदर्शों के प्रति अनास्था है ? ...जो भी हो, गम्भीर है यह, हमारी दुर्बलताओं का प्रतीक है यह, हमारे लिये आत्मनिरीक्षण का विषय है यह । यदि कोई गंगाराम सर्फ़ुद्दीन होता है तो उसके होने में हमें हमारी प्रच्छन्न भूमिका को स्वीकार करना  होगा । 

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