रविवार, 2 सितंबर 2012

भारत में विदेशी घुसपैठ ...एक छद्म आतंकवाद

 पिछले दिनों बृहद् संख्या में म्याँमार से निकाले गये विदेशी घुसपैठिये मुसलमानों को भारत में शरण देने के लिये कुछ भारतीय मुस्लिम संगठनों द्वारा प्रदर्शन आदि का समाचार पढ़ने को मिला। भारत में जहाँ इस्लामिक इन्फ़िल्ट्रेशन एक सोची-समझी रणनीति का परिणाम है वहाँ इस घटना पर राजनेताओं द्वारा कोई गम्भीर टिप्पणी न किया जाना आश्चर्यजनक था। फिर समाचार आया असम में हुयी हिंसा के बारे में। असम का एक बड़ा हिस्सा विदेशी घुसपैठियों द्वारा हड़प लिया गया है। इन बांग्लादेशी घुसपैठियों ने असम में ज़मीनें ख़रीद लीं, राशन कॉर्ड बनवा लिये, मतदाता सूची में अपने नाम जुड़वा लिये ...कुल मिलाकर भारत के नागरिकों को मिलने वाली सभी सुविधाओं और अधिकारों पर सरे आम डाका डाल लिया। डाका डालने की यह खुली प्रक्रिया अभी भी ज़ारी है। चिंतनीय है कि भारत में..असम में आख़िर कौन हैं वे लोग जो विदेशी..इस्लामिक घुसपैठियों की सहायता करते हैं? ..यही प्रश्न कल भी मेरे मन में उठा था जब पूर्वांचल से आये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यवाह कृष्णगोपाल जी का हमारे शहर में व्याख्यान हो रहा था। उन्होंने मात्र इतना संकेत किया कि सहायता करने वाले लोग भ्रष्ट हैं ...भ्रष्ट राजनीतिक दल वोट के लालच में इनका समर्थन करते हैं।
किंतु यह आत्मघाती होगा यदि हम देश के भीतर के देशद्रोहियों की पहचान में विफल रहते हैं या उनकी पहचान की उपेक्षा करते हैं। माना कि 1945 से न केवल असम पर अपितु पूरे भारत पर ही कट्टर मुस्लिमों की गिद्ध नज़रें भारत को इस्लामिक देश बनाने पर लगी रही हैं किंतु उनके इस दूरदर्शी मिशन की शनैः-शनैः सफलता और हिन्दुओं की असफलता के कारणों को खोजना ही पड़ेगा जो हमारे भीतर भी छिपे हुये हैं। बांग्लादेशी मुसलमानों के भारत में राशन कार्ड से लेकर पैन कार्ड तक सब कुछ बन जाते हैं (मेरा अभी तक मतदाता परिचयपत्र नहीं बन सका, फ़ोटो कई बार खिच गयी ..फ़ॉर्म भी दो बार भर चुका पर अभी तक मतदाता परिचयपत्र नहीं मिला, जबकि मेरे पूर्वज न जाने कितनी पीढ़ियों से भारत के मूल निवासी रहे हैं... मैं भी हूँ) प्रश्न यह है कि कौन बनाता है यह सब? कोई निजी संस्था नहीं बनाती...सरकारी संस्थायें बनाती हैं ...बनाने वाले अधिकारी भारतीय हैं...निश्चित ही वे सब मुसलमान नहीं हैं, उनमें से अधिकाँश हिन्दू ही हैं। क्या यह हमारी सबसे बड़ी दुर्बलता और गद्दारी नहीं है? क्या यह भी हमारी दुर्बलता नहीं है कि जिस समय यह सब हो रहा होता है उस समय स्थानीय लोग ख़ामोश बने रहते हैं। यदा-कदा कोई आवाज़ उठाता भी होगा तो उसकी आवाज़ दबा दी जाती होगी। सदन में विपक्षी दल क्यों चुप रहते हैं इन घटनाओं पर? सवालों के घेरे में हर कोई है, निर्दोष कोई नहीं। हमें अपने बीच के गद्दारों को खोज-खोजकर सामने लाना होगा ...और यह कोई मुश्किल काम नहीं है।
हमारे सहकर्मी डॉक्टर रामस्वरूप मरकाम के पूर्वज कुछ पीढ़ी पूर्व बस्तर से बालाघाट चले गये थे अब वे पिछले 50 वर्ष का अपना बस्तरिया रेकॉर्ड नहीं दे पा रहे हैं इसलिये उनका आदिवासी होने का जाति प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहा है लिहाज़ा उन्हें हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी है। और वहीं इसी छत्तीसगढ़ के रायपुर में कुछ पाकिस्तानियों को सब कुछ हासिल हो जाता है। इतनी गहरी राष्ट्रभक्ति शायद ही विश्व के अन्य किसी देशवासियों में मिले। सीधी सी बात है कि गद्दार हमारे बीच में हैं ....दायें-बायें-ऊपर-नीचे गद्दार ही गद्दार हैं। क्यों नहीं ऐसे ज़िम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाये जाने का प्रावधान किये जाने के लिये विपक्षी दल संघर्ष करते हैं ?
मुझे अच्छी तरह याद है सन् अस्सी के दशक में एक बार जब मैं वाराणसी से पटना जा रहा था तब हमारे ही डिब्बे में दस बांग्लादेशियों का एक दल भी था। वे मात्र बांग्ला ही बोल पा रहे थे। मुझे उनकी गतिविधियाँ कुछ संदिग्ध लगीं तो ट्रेन के दानापुर पहुँचते ही मैंने उतरकर पुलिस को इसकी ख़बर की। मेरा सन्देह ठीक निकला, उनके पास वीसा तो छोड़िये ट्रेन का टिकट तक नहीं था। पुलिस वालों ने सभी को ट्रेन से उतारकर नीचे खड़ा कर लिया और पूछताछ करने लगे। जैसे ही ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ी ..मैंने ट्रेन से झाँककर देखा कि पुलिस वालों ने उनसे कुछ लिया और उन्हें प्लेटफ़ॉर्म के एक ओर से बाहर तक लेजाकर छोड़ दिया। चन्द पैसों के लिये बिकजाने वाले हम भारतीय क्या विदेशी घुसपैठ के लिये उत्तरदायी नहीं हैं ? केवल राजनीतिक दलों पर दोषारोपण करते रहने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। ठीक है... सरकार ध्यान नहीं देती किन्तु विपक्षी दलों की उदासीनता भी कम दोषी नहीं। हम ख़ुद भी उतने ही दोषी हैं। हम अपने आसपास नये बसने वाले लोगों के प्रति सचेत क्यों नहीं हैं? आज करोड़ों की संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आकर भारत के नागरिक बनते जा रहे हैं ...कौन बना रहा है उन्हें भारतीय नागरिक? जो बना रहा है वह देशद्रोही है उसके विरुद्ध देशद्रोह का मुकद्दमा चलाने की बात क्यों नहीं की जाती?
विषय हल्का नहीं है...बहुत गम्भीर है। देश के भविष्य का आकार-प्रकार, स्वरूप और सेहत जुड़ी हुयी है इन सवालों से। अब चिंतन का समय समाप्त हो चुका, कुछ निर्णय करना होगा।

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