बुधवार, 29 सितंबर 2010

एक बच्चा प्यारा सा ....

वह अभी मात्र दो वर्ष का है.और सेरिब्रल पैल्सी से पीड़ित है. उसकी माँ बड़ी आशा से मेरे पास लेकर आयी थी उसे .जब मैंने उससे कहा कि हम इसके लिए कुछ ख़ास नहीं कर सकेंगे तो उसकी ममता आखों से फूट पडी. मैंने कुछ दवाइयां लिखकर दे दीं. पर मैं जानता हूँ वह ठीक नहीं हो सकेगा. जाते समय उसकी निराशा थकी हुयी चाल  में स्पष्ट देखी जा सकती थी. इस बच्चे को वह कब तक अपनी छाती से लगाकर जी सकेगी ? उसे कठोर बनना होगा. किसी माँ के लिए यह कितना मुश्किल काम है. वह एक जीवित लाश से अधिक और कुछ नहीं था. उसके जाते ही मुझे भी अपनी आँखें  पोछनी पडीं. बच्चे के लिए सचमुच मुझे बहुत दुःख हुआ. काश ! ऐसे बच्चों के लिए कुछ भी किया जा सकना संभव हो पाता. चिकित्सा विज्ञान अभी भी कितना असहाय है ?
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1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.